आंगन तक बेखौफ पहुंच रहे खूंखार गुलदार, 23 सालों में 514 को बनाया निवाला
देहरादून। गुलदार का नाम सुनते ही आजकल लोग सहम जाते हैं। 71 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र वाले उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में पिछले कुछ समय में गुलदार की दहशत बढ़ गई है। गुलदार घात लगाकर महिलाओं, बच्चों या पालतू पशुओं को अपना शिकार बना रहा है। अब तो स्थिति यह है कि गुलदार घर में घुस कर बच्चों को उठा रहा है। इसके कारण ग्रामीण इलाके में बच्चे कई-कई दिन स्कूल नहीं जा पाते। कई गांव सिर्फ इसलिए खाली हो गए कि वहां रहने वाले लोग अब गुलदार का निवाला नहीं बनना चाहते।
प्रदेश में गुलदार की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, ऐसे में भोजन-पानी की तलाश इन्हें जंगल से बाहर रिहायशी इलाकों तक ला रही है। वन विभाग विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में अभी गुलदारों की संख्या करीब 3115 है, लेकिन जानकारों की मानें तो यह संख्या इससे कहीं अधिक है। गुलदार खूंखार और चालाक होता है, जो बहुत ही चालाकी से अपना शिकार करता है।
प्रदेश में मानव-वन्यजीव संघर्ष में इस वर्ष अब तक 40 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। इनमें से 13 लोगों की जान गुलदार ने ली है। मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते टकराव की वजह से दोनों का ही नुकसान हो रहा है। इस दौरान 82 गुलदार भी मारे गए हैं। वन महकमा और विशेषज्ञ इस बात को लेकर चिंतित हैं। वर्ष 2000 से अब तक गुलदार के हमले में 514 लोगों की जान गई है, जबकि 1868 लोग घायल हुए हैं। वहीं, वर्ष 2000 से अब तक 1741 गुलदारों की मौत रिकॉर्ड में दर्ज है।
हमने गुलदारों पर पूर्व में किए गए शोध के आंकड़ों को विशेषज्ञों के साथ साझा किया है। उम्मीद है कि उनके व्यवहार की बेहतर समझ हमें संघर्ष कम करने के तरीकों में मदद कर सकती है। गुलदार जब भी मानव आबादी में प्रवेश करता है, कुत्ते उसका पहला शिकार होते हैं। खासकर मानसून के सीजन में कुत्ते बारिश और बिजली चमकने के कारण दुबक जाते हैं, ऐसे में गुलदार शिकार न मिलने पर मानव पर हमला कर देता है। अधिकतर मामलों में बच्चे और महिलाएं उसके शिकार बनते हैं।
गुलदार ने वर्ष 2015 से अब तक सात लोगों को अपना निवाला बनाया। वर्ष 2015 में पूलन मल्ला में गुलदार ने एक-एक व्यक्ति को अपना निवाला बनाया था, जबकि वर्ष 2020 में बांसी, पपडासू व धारी गांव में भी गुलदार ने एक-एक की जान ले ली। इसके अलावा 2021 में सिल्ला बमणगांव, 2022 में बस्टा व 2023 में गहडखाल में घटना हुई है।
एक सप्ताह में तीन लोगों पर गुलदार हमले का प्रयास कर चुका है। हालांकि, इा दौरान तीन लोगों को मामूली खरोंचें आईं हैं। धर्मनगरी का अधिकांश हिस्सा और ग्रामीण क्षेत्र जंगलों से लगे हैं। जिससे हाथी, गुलदार और अन्य जंगली जानवर आबादी क्षेत्रों में आते रहते हैं और लोगों पर हमला कर रहे हैं। एक गुलदार का तो चार साल पहले इतना आतंक हो गया था कि उसने पांच लोगों को अपना शिकार बना लिया था। उसे आदमखोर घोषित करते हुए मौत के घाट उतारा गया था। राजाजी टाइगर रिजर्व जंगल से लगे भेल, शिवालिक नगर पालिका और धनौरी, बहादराबाद क्षेत्र और लालढांग में गुलदार अक्सर आबादी क्षेत्र में देखे जा सकते हैं। दिन ढलते ही गुलदारों की चहलकदमी शुरू हो जाती है। डीएफओ नीरज शर्मा ने बताया, गुलदार की आबादी में बढ़ोतरी हो रही है।
पौड़ी जिले के दुगड्डा, द्वारीखाल, एकेश्वर, रिखणीखाल, नैनीडांडा और बीरोंखाल के ग्रामीण बीते कई वर्षों से वन्यजीव खासकर गुलदार और बाघ की दहशत के बीच जीने को मजबूर हैं। अभी तो गुलदार अक्सर बाइक सवारों का पीछा करते रहते हैं। कालागढ़ टाइगर रिजर्व से सटे रिखणीखाल और नैनीडांडा के गांवों में जहां बाघ की चहलकदमी बढ़ गई, वहीं यहां गुलदार भी लोगों पर हमले कर जान ले रहा है। वन्यजीवों का भय और परिवार की जान बचाने के लिए दुगड्डा के गोदी बड़ी और चौबट्टाखाल के मजगांव के तोक गांव भरतपुर के लोग अन्यत्र पलायन कर चुके हैं। बीते दो साल में गुलदार और बाघ के हमले की दो दर्जन से अधिक घटनाओं में 19 लोग जान गंवा चुके हैं। लैंसडौन में बाइक सवारों पर गुलदार के 10 से अधिक मामले सामने आए हैं, जिससे लोगों में दहशत बनी हुई है। नैनीडांडा के पूर्व कनिष्ठ प्रमुख संजय गौड़ बताते हैं कि उनके इलाके में गुलदार के साथ ही बाघ भी सक्रिय है। तीन अक्तूबर की शाम गुणिया गांव की महिला बिगारी देवी को मारने वाला भी बाघ है, जो घटना के बाद से लगातार गुर्रा रहा है।
गत पांच अप्रैल को शंकरपुर में शाम करीब सात बजे घर के बाहर साथियों के साथ खेलते चार वर्षीय अहसान को गुलदार उठा ले गया। बच्चों के चीखने की आवाज सुनकर परिजन दौड़े, लेकिन लगातार तलाशने के बाद परिजनों के अगले दिन आम के बाग में अहसान का शव मिला। आज भी अपने कलेजे के टुकड़े का नाम सुन मां अरजीना की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। अहसान के पिता जोशिन अली ने बताया, मुझे फोन से बेटे को गुलदार के उठा ले जाने की सूचना मिली। जब घर गया तो कोहराम मचा हुआ था। थोड़ी ही देर में जंगलात और थाना सहसपुर थाने की पुलिस मौके पर पहुंची। पूरा गांव मशाल लेकर हमारे साथ बच्चे को खोजने लगा। वनकर्मियों और पुलिसकर्मियों ने आसपास के आम के बाग में देखा पर अहसान का कहीं पता नहीं लगा। अगले दिन सुबह सात बजे प्राइमरी स्कूल के पास बेटे का शव मिला। बेटे के शव को देखकर पूरी तरह से टूट गया था। अहसान तीन भाइयों में सबसे छोटा था। वसीम और नसीम दोनों उससे बड़े हैं।
जोशिन अली ने बताया, वन विभाग ने गुलदार को पिंजरा लगाकर पकड़ा, लेकिन हमें ऐसा लगता है कि वह उनके बेटे को मौत के घाट उतारने वाला गुलदार नहीं था। बताया, वन विभाग से चार लाख रुपये का मुआवजा मिल गया, लेकिन हमारा बच्चा गया, उसकी भरपाई कौन करेगा। मां अरजीना से बात की गई तो वह बच्चे की याद रोने के अलावा कुछ नहीं कह पाई। नई टिहरी में दो साल में ही गुलदार ने टिहरी जिले में चार लोगों को मार डाला, जबकि आठ लोगों को घायल किया है। हालांकि, हमलावर एक गुलदार भी ढेर किया गया, लेकिन जिन्होंने अपने जिगर का टुकड़ा खोया है, उनके लिए वह हादसा भुलाना आसान नहीं है।
इसी साल 26 अगस्त को ही प्रतापनगर ब्लॉक के भरपूरियागांव में गुलदार ने घर के आंगन से एक तीन साल के बच्चे को उठा लिया था। वन विभाग ने क्षेत्र में डेरा जमाकर महीनेभर बाद एक गुलदार को तो ढेर कर दिया था, लेकिन अपने तीन साल के बच्चे को खोने वाली मां, पिता, दादी और दादा उस घटना को अभी तक नहीं भूल पाए हैं। तीन वर्षीय आरव के दादा हरिभजन सिंह कहते हैं, कि मैं उस दिन रोज की तरह अपने नाती के लिए बिस्कुट लेकर आता तो शायद यह घटना नहीं होती। इससे पहले वह हर रोज नाती के लिए बाजार से कुछ ना कुछ लेकर आते थे, जिससे वह उन्हीं के पास बैठा रहता था। उस दिन शाम करीब सात बजे बच्चे की मां धर्मा देवी निचले कमरे में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी। आरव उठकर ऊपर कमरे में अपनी दादी सीता देवी के पास जाने के लिए सीढि़यां चढ़ रहा था, इसी दौरान घात लगाकर बैठा गुलदार बच्चे को उठा ले गया।
नौगांव ब्लाक के अपर यमुना वन प्रभाग की बर्निगाड रेंज के तीयां बीट में गुलदार का आतंक बना हुआ है। यहां बीते माह गुलदार ने घास काटने गई मांडण गांव की महिला को घायल कर दिया था। इसके बाद से धान की मंडाई और घास काटने जैसे काम करने में ग्रामीणों में भय का माहौल है। दोपहर में ही गुलदार देखे जाने की घटना से महिलाएं खेतों में काम करने से डर रही हैं। इधर, गुलदार को आबादी क्षेत्र से दूर भगाने के लिए वन विभाग ने बर्निगाड रेंज के खाटल बीट में संभावित स्थानों पर ट्रैप कैमरे और सोलर हूटर लगाए हैं। इधर, चिंयालीसौड़ ब्लाक के चमियारी, उलण आदि गांवों में भी गुलदार देखा गया है। हालांकि, यहां गुलदार ने अभी किसी पर जानलेवा हमला नहीं किया है।
श्रीनगर गढ़वाल वन प्रभाग के नागदेव रेंज पौड़ी में शामिल ढिकाल गांव में इसी साल पांच सितंबर को दिनदहाड़े गुलदार ने दादी का हाथ पकड़कर घर के बगल में खड़ी चार वर्षीय आयसा पर गुलदार ने हमला कर दिया था, जिसमें गुलदार के जबड़े से दादी ने पोती को संघर्ष के बाद छुड़ा तो लिया, लेकिन तब तक उसने दम तोड़ दिया था। इसके बाद बीते 25 सितंबर को क्षेत्र के भटोली गांव में गुलदार ने घर के बरामदे में पढ़ाई कर रहे सात वर्षीय प्रिंस पर गुलदार ने हमला किया था, उसकी 10 वर्षीय बहन आराधना ने भाई को लपक कर घर के भीतर धकेल दिया था, जबकि गुलदार की ओर पढ़ाई के टेबल को फेंकने के साथ ही शोर मचा दिया था। श्रीनगर व आसपास के क्षेत्रों में गुलदार के हमलों की 15 से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। मेडिकल कॉलेज में घुसे गुलदार को शूटर्स ने निशाना बनाया था। यहां तक की श्रीनगर के कई क्षेत्रों में गुलदार के घर में घुसने की घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं।
गढ़वाल वन प्रभाग अब क्षेत्र में मानव वन्यजीव संघर्ष को न्यून करने को लेकर गुलदार कू दगडियां अभियान जल्द शुरु करने जा रहा है। डीएफओ गढ़वाल वन प्रभाग स्वनिल अनिरुद्ध ने बताया, प्रभाग में जल्द गुलदार कू दगडिया (लीविंग विद लेपर्ड) अभियान शुरू किया जाएगा। इसके तहत एक ओर जहां प्रभावित क्षेत्रों में गुलदार की निगरानी के लिए ट्रैप कैमरे लगाए जाएंगे, वहीं वन विभाग की टीम गांवों में ग्रामीणों को गुलदार के व्यवहार में आए बदलाव, उसके कारणों व हमें अपनी दैनिक दिनचर्या में लाने वाले बदलावों पर जानकारी देगी।
प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) अनूप मलिक के अनुसार, बचाव के कुछ तरीकों को अपनाकर मानव वन्य जीव संघर्ष की घटनाओं से बचा जा सकता है। इस संबंध में उनकी ओर से मुख्य वन संरक्षक प्रचार-प्रसार को निर्देशित किया गया है। इसके अलावा प्रभागीय वनाधिकारियों और निदेशकों से इस मामले में संवेदनशीलता बरतने व त्वरित कार्रवाई के लिए कहा गया है। प्रभागीय वनाधिकारी, उप प्रभागीय वनाधिकारी घटना की परिस्थितियों को समझने का प्रयास करेंगे। भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए उपाय किए जाएं। घटना के बाद नियमानुसार यथाशीघ्र अनुग्रह, राहत राशि के भुगतान की कार्रवाई की जाए। अधिक से अधिक 15 दिनों के भीतर भुगतान कर दिया जाए।
एसडीआरएफ की अग्रिम भुगतान की व्यवस्था न होने के मद्देनजर उनसे प्रतिपूर्ति के लिए प्रभागीय वनाधिकारी, निदेशक की ओर से अपर प्रमुख वन संरक्षक नियोजन एवं वित्तीय प्रबंधन के समक्ष मांग प्रस्तुत करें। जिन स्थानों पर गुलदार की सक्रियता दिखाई पड़े या आकस्मिक हमले घटित हों, वहां प्रभागीय वनाधिकारी, निदेशक की आरआरटी, क्यूआरटी की तैनाती की जाए।