उत्तरकाशी आपदा: 1750 में टूटकर भागीरथी में गिरी पहाड़ी, बनी 14 किमी लंबी झील

उत्तरकाशी। सीमांत जिला उत्तरकाशी भूकंप, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं के लिए संवेदनशील रहा है। वर्ष 1750 में अतिवृष्टि के कारण हर्षिल क्षेत्र में झाला के पास अवांड़ा का डांडा नामक पहाड़ी टूटकर करीब 2000 मीटर की ऊंचाई से सुक्की गांव के नीचे भागीरथी नदी में आ गिरी थी। इससे नदी का प्रवाह रुक गया और झाला से जांगला तक लगभग 14 किलोमीटर लंबी झील बन गई, जिसमें तीन गांव समा गए थे।

गढ़वाल विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी प्रो. महेंद्र प्रताप सिंह बिष्ट के अनुसार हर्षिल का सेना कैंप भी पुराने ग्लेशियर एवलांच क्षेत्र पर स्थित है। ऐसे स्थानों में अभी भी मलबा मौजूद है, जो समय-समय पर भारी वर्षा के दौरान आपदाएं उत्पन्न कर सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार को असुरक्षित स्थानों को चिह्नित कर बसावट रोकनी चाहिए।

केदारताल पर निगरानी की जरूरत

प्रो. बिष्ट ने बताया कि गंगोत्री के पास स्थित केदारताल एक ग्लेशियर जनित झील है, जिसका आकार लगातार बढ़ रहा है। उन्होंने उपग्रह आंकड़ों से 2019 से इसका अवलोकन किया है। इसके फटने की स्थिति में गंगोत्री को गंभीर खतरा हो सकता है, अतः इसकी नियमित निगरानी आवश्यक है।

बढ़ते बादल फटने की घटनाएं, घटती बारिश

वरिष्ठ भूविज्ञानी यशपाल सुंद्रियाल के अनुसार, 500 वर्षों के शोध से पता चला है कि उत्तराखंड में बारिश की मात्रा घट रही है, लेकिन बादल फटने और अतिवृष्टि की घटनाएं बढ़ी हैं, जिसका मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग है। उन्होंने बताया कि 1978 में डबरानी के पास झील बनने और उसके टूटने से भागीरथी का जलस्तर इतना बढ़ा कि उत्तरकाशी का जोशियाड़ा क्षेत्र बह गया था। इसके बावजूद सरकार ने न तो चेतावनी प्रणाली सुदृढ़ की और न ही फ्लड प्लेन पर निर्माण कार्यों पर रोक लगाई।

 

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