उत्तराखंड में बन रहा चकबंदी का विशिष्ट मॉडल, ये दो गांव हो सकते हैं चयनित

देहरादून। उत्तराखंड में किसानों की आय दोगुना करने के प्रयासों में जुटी सरकार आने वाले दिनों में चकबंदी की दिशा में भी कदम उठाने जा रही है। प्रथम चरण में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसके लिए दो गांव चयनित किए जाएंगे। ऊधम सिंह नगर जिले के कुरैया और जगन्नाथपुर गांव इस खांचे पर फिट बैठ सकते हैं। इन गांवों में चकबंदी के दृष्टिगत भूमि के अभिलेखीकरण का कार्य पूर्ण हो चुका है। ऐसे में इनके चकबंदी के लिए चयनित किए जाने की उम्मीद है।

वहां के अनुभवों के आधार पर सरकार चकबंदी को व्यापक स्वरूप देगी। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में बिखरी जोत और इसका बेहतर प्रबंधन न होने के कारण कम उपज को देखते हुए चकबंदी पर जोर दिया जाता रहा है। उत्तर प्रदेश के समय इसे लेकर कसरत हुई। दो चकबंदी कार्यालय भी तब खुले थे, लेकिन पहल परवान नहीं चढ़ पाई।

उत्तराखंड के गठन के बाद भी चकबंदी की जरूरत बताई गई, लेकिन भूमि के समान वितरण समेत अन्य दिक्कतों को देखते हुए सरकारें इसमें हाथ डालने से बचती रहीं। यही नहीं, त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में स्वैच्छिक चकबंदी को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया गया। कुछ गांवों में प्रयास अवश्य हुए, लेकिन यह पहल मुहिम का आकार नहीं ले पाई।

यद्यपि, चकबंदी के दृष्टिगत भूमि के अभिलेखों आदि को लेकर कसरत चल रही है। विशेषकर मैदानी जिलों में। ऊधम सिंह नगर में दो गांवों में भू अभिलेखीकरण कार्य पूर्ण होने के दृष्टिगत राजस्व परिषद को इसकी जानकारी दी गई है। इस बीच सरकार ने राज्य में चकबंदी का विशिष्ट मॉडल बनाने की ठानी।

कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री गणेश जोशी के अनुसार इसके लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत दो गांव चयनित कर वहां चकबंदी लागू की जाएगी। ये गांव कुरैया व जगन्नाथपुर भी हो सकते हैं। चयनित गांवों के अनुभव के आधार पर अन्य गांवों के किसानों को चकबंदी के लिए प्रेरित किया जाएगा। जहां तक कृषि भूमि के समान वितरण को लेकर प्रश्न है तो ऐसे विषयों को आपस में मिल-बैठकर सुलझाया जाएगा।

कबंदी का अर्थ है खेत के छोटे-छोटे हिस्सों को मिलाकर एक करना। राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में जोत छोटी व बिखरी है, जिस कारण उसका प्रबंधन नहीं हो पा रहा है। ऐसे में गांव के निवासियों की समस्त भूमि को एक चक मानकर उसका बराबर बराबर वितरण किया जाता है। इससे एक ही जगह खेती होने से न केवल उसका प्रबंधन बेहतर होगा, बल्कि उपज भी अच्छी मिलेगी।

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