New IT Rules : मचा है हंगामा, प्रेस की आजादी का गला घोंट रही है मोदी सरकार?
केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम 2021 में जो संशोधन किये हैं उस पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। सरकार के इस कदम को प्रेस का गला घोंटने की कवायद बताते हुए मांग की जा रही है कि वह इसे वापस ले। वहीं सरकार का कहना है कि भारत में मीडिया को पूरी तरह स्वतंत्रता है और लोगों को अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है और सरकार कोई ऐसा कदम नहीं उठायेगी जिससे नागरिक स्वतंत्रता बाधित होती हो। हम आपको बता दें कि यह सारा विवाद इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि सरकार से जुड़ी सामग्री को ‘फर्जी’ या ‘गुमराह करने वाला’ बताने के लिए एक तथ्यान्वेषी इकाई गठित करने का निर्णय लिया गया है जिसे कुछ मीडिया संगठनों ने ‘‘सेंशरशिप’’ के समान बताते हुए आरोप लगाया है कि इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन भी होगा।
क्या कहते हैं नये नियम?
हम आपको बता दें कि नये अधिसूचित नियमों के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के पास एक तथ्यान्वेषी इकाई गठित करने की शक्ति होगी, जिसके पास यह निर्धारित करने की असीम शक्तियां होंगी कि केंद्र सरकार के किसी कामकाज से जुड़ी कोई खबर क्या ‘‘फर्जी या झूठी या गुमराह करने वाली’’ है? इस इकाई के पास सोशल मीडिया मंचों, इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और अन्य सेवा प्रदाताओं सहित मध्यस्थों को इस तरह की सामग्री को पोस्ट करने की अनुमति नहीं देने और प्रकाशित होने पर उन्हें हटाने का निर्देश देने की शक्ति भी होगी।
मसलन यदि सरकार को लगता है कि तमाम इंटरनेट प्लेटफॉर्म जैसे गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि पर कोई गलत खबर चल रही है या गलत सूचना प्रसारित की जा रही है तो सरकारी इकाई उस खबर को हटाने और उसका यूआरएल डिलीट करने के लिए कह सकती है। यदि कोई कंपनी गलत अथवा भ्रामक जानकारी को हटाने में विफल रहती है तो उसे अपने विशेषाधिकार से हाथ धोना पड़ेगा। हम आपको बता दें कि कोई यूजर यदि आपत्तिजनक सामग्री को ऑनलाइन पोस्ट करता है तो विशेषाधिकार कानून के तहत इंटरनेट कंपनियां कानूनी कार्रवाई से बच जाती हैं।
लेकिन अब जो नये नियम आये हैं उसके मुताबिक यदि सरकार ने किसी खबर या सूचना को फर्जी पाते हुए उसे हटाने का आदेश जारी किया तो इंटरनेट कंपनियों को तत्काल वह हटाना ही होगा। नये नियमों के तहत आपत्तिजनक या भ्रामक सामग्री नहीं हटी तो कंपनी और यूजर, दोनों पर कार्रवाई होगी। हम आपको बता दें कि नये नियमों के तहत सभी तरह की समाचार और गैर-समाचार कंपनियां आती हैं। इसके साथ ही नये नियमों में ऑनलाइन गेमिंग से संबंधित नियम भी अधिसूचित किये गये हैं। इसमें ऑनलाइन गेम की परिभाषा भी स्पष्ट की गयी है। परिभाषा के मुताबिक ऑनलाइन गेम वह है जोकि इंटरनेट पर मौजूद है और कंप्यूटर या मोबाइल के जरिए यूजर्स तक इनकी पहुंच है।
विरोधियों का तर्क क्या है?
कुछ मीडिया संगठनों के अलावा एडिटर्स गिल्ड ने इसका विरोध करते हुए अपनी आवाज उठाई है लेकिन यहां सवाल यह भी खड़ा होता है कि सभी मीडिया संगठन जब विभिन्न तरह के जागरूकता अभियान चलाकर फर्जी खबरों से आगाह करते हैं और फेक न्यूज तथा पेड न्यूज के खिलाफ आवाज उठाते हैं तब ऐसे में यदि सरकार भी इस कार्य में सहयोग कर रही है तो चिंता क्यों व्यक्त की जा रही है? अधिकतर टीवी चैनल और समाचार पोर्टल फैक्ट चेक जैसे अभियान चला कर तमाम खबरों की सत्यता या असत्यता को प्रमाणित करते ही हैं, ऐसे में उन्हें तो प्रसन्न होना चाहिए कि इस काम में सरकार भी मदद करने जा रही है। सरकारी नीतियों की सिर्फ आलोचना करने का अभियान चलाने की बजाय सरकार को प्रस्तावित व्यवस्था को त्रुटिपूर्ण बनाने के लिए सुझाव दिये जाने चाहिए। सोशल मीडिया कंपनियों ने भी सरकार के इस फैसले का विरोध किया है लेकिन उन्हें समझना होगा कि भारत में कारोबार करना है तो यहां के नियमों को मानना ही होगा।
सरकारी नीति का विरोध करने वालों से कुछ सवाल
यही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 (आईटी संशोधन नियम, 2023) से जो लोग परेशान हो रहे हैं उन्हें बेकार का भ्रम फैलाने से बचना चाहिए। जो लोग आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं उन्हें एक भी उदाहरण सामने आये बिना यह आरोप लगाने से बचना चाहिए कि सरकार या इसकी एजेंसी यह निर्धारित करने के लिए असीम शक्ति का इस्तेमाल करेगी कि उसके कामकाज के बारे में क्या फर्जी है। इसके अलावा यह भी पहले ही कैसे मान लिया गया है कि पक्षों को सुने बिना और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किये बिना सरकार कोई आदेश सुना देगी?
इन सवालों के जवाब दे सरकार
हालांकि सरकार को भी चाहिए कि वह प्रस्तावित तथ्यान्वेषी इकाई से संबंधित सारी जानकारी साझा करे जैसे कि इसका संचालन तंत्र क्या होगा? इसकी शक्तियों के इस्तेमाल के आलोक में क्या न्यायिक अवलोकन उपलब्ध होगा? या अपील करने का अधिकार होगा या नहीं? इसके अलावा, यदि मीडिया संगठनों का यह आरोप सही है कि सरकार ने संशोधनों पर हितधारकों के साथ बिना परामर्श किये अधिसूचना जारी कर दी, तो ऐसा करने से सरकार को बचना चाहिए था। सरकार को अब चाहिए कि फैक्ट चेक के बारे में ‘क्या करें’ और ‘क्या न करें’ को अधिसूचित करने से पहले हितधारकों के साथ साझा किया जाये ताकि लोगों के मन के संशय दूर हो सकें।
बहरहाल, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि बिना नियमन के कोई भी व्यवस्था बिगड़ सकती है इसलिए नियमन की कवायद या नियामकीय तंत्र की व्यवस्था करने को प्रेस की आजादी पर हमला नहीं बोला जा सकता। यदि किसी पक्ष को आपत्ति है तो वह अदालत में इसे चुनौती दे ही सकता है। लेकिन ऐसा किए बिना नियमों के विरुद्ध माहौल बनाने का प्रयास करना संभावित निजी स्वार्थ की ओर ही इशारा करता है।