हौसले की उड़ान: मूक-बधिर नेहा ने संघर्षों के बीच रची सफलता की कहानी
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के अवसर पर पूरे देश में सरकारी योजनाओं और विशेष बच्चों को दी जा रही सुविधाओं के दावों की चर्चा चल रही थी, लेकिन बागेश्वर जिले की मूक-बधिर बेटी नेहा पांडेय की सच्ची कहानी इन दावों की वास्तविकता पर सवाल खड़े करती है। जन्म से न सुन सकने और न बोल सकने वाली नेहा ने अपने अथक प्रयासों और मां के अटूट विश्वास के बल पर वह कर दिखाया है, जिसे देखने के बाद हर कोई उसका प्रशंसक बन जाता है।
नेहा के लिए संघर्ष बचपन से ही शुरू हो गया था। जिले में दिव्यांग बच्चों के लिए कोई विशेष विद्यालय नहीं था, और जब परिवार ने उसे सरकारी व निजी स्कूलों में प्रवेश दिलाने की कोशिश की, तो लगभग हर जगह से इंकार मिला। स्कूलों का तर्क था कि उनके पास ऐसे बच्चों के लिए आवश्यक उपकरण और प्रशिक्षित शिक्षक नहीं हैं। इस असहिष्णु रवैये के बीच नेहा की मां अनीता पांडेय ने हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने बड़ी बेटी दीक्षा को पढ़ाते समय नेहा को भी साथ बैठाना शुरू किया। दीक्षा को लिखते-बोलते देखकर नेहा ने कई मूलभूत चीजें स्वयं ही समझ लीं और सीख लीं।
समय के साथ नेहा की जिज्ञासु प्रवृत्ति और सीखने का निरंतर प्रयास उसके लिए रास्ता बनाता गया। कई बार ट्यूशन की तलाश की गई, लेकिन अधिकांश शिक्षकों ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्हें नेहा की “विशेष भाषा” समझ नहीं आती। इस स्थिति में नेहा ने खुद को किताबों, कक्षा में बोर्ड पर लिखे पाठ और ऑनलाइन उपलब्ध सामग्रियों के माध्यम से पढ़ाया। संघर्ष के बावजूद उसकी प्रतिभा सामने आती गई, और अंततः नौवीं कक्षा में विवेकानंद विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, मंडलसेरा ने उसे प्रवेश दिया।
इस वर्ष अप्रैल में संपन्न हुई हाईस्कूल बोर्ड परीक्षा नेहा के लिए निर्णायक साबित हुई। तमाम चुनौतियों के बावजूद उसने 70 प्रतिशत अंक प्राप्त किए। उसके विषयवार अंक उसकी मेहनत की गवाही देते हैं—विज्ञान में 75, सामाजिक विज्ञान में 83, हिंदी में 72, संस्कृत में 67, गणित में 60 और अंग्रेजी में 60 अंक। ये परिणाम न केवल उसके परिवार के लिए गर्व का क्षण थे, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणा भी हैं जो दिव्यांग बच्चों की क्षमताओं पर संदेह करते हैं।
वर्तमान में नेहा ग्यारहवीं कक्षा में वाणिज्य वर्ग की पढ़ाई कर रही है। उसका सपना है—पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बनना और सिद्ध करना कि किसी भी दिव्यांगता से बड़ा इंसान का हौसला होता है। नेहा पांडेय आज पूरे बागेश्वर ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी हैं।

