साल के बीज लाएंगे समृद्धि, वनोपज में जुड़ा नया अध्याय
देहरादून। प्रदेश में करीब पांच हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले साल के जंगल ग्रामीणों और वन विभाग की आय का नया जरिया बनेंगे। प्रदेश में पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर साल के बीजों को इकट्टा कर बाजार में बेचने की योजना पर काम किया जा रहा है। इस तरह से वन बाहुल्य प्रदेश उत्तराखंड में वनोपज का नया अध्याय जुड़ गया है।
प्रदेश में धामी सरकार का जोर वनाें से आय बढ़ाने पर है। इसके लिए इको टूरिज्म के अलावा वनों से मिलने वाली विभिन्न प्रकार की उपज से कैसे समृद्धि लाई जा सकती है, इस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ओर से अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। इसी कड़ी में वन विभाग ने साल के बीजों से आय जुटाने की इस योजना पर पहली बार काम शुरू किया है।
एक अनुमान के अनुसार उत्तराखंड में करीब 45 लाख कुंतल साल के बीजों का उत्पादन होता है।हालांकि इस योजना में सभी बीजों को इकट्ठा नहीं किया जाएगा, बल्कि इसके लिए फायर लाइन और सड़कों के किनारे गिरे बीजों को इकट्ठा किया जाएगा। इस हिसाब से भी लाखों कुंतल बीज इकट्ठा हो जाएंगे। वन विभाग की ओर से पहली बार बीजों को एकत्रित किया जा रहा है, कितने बीज एकत्र किए गए हैं, इसका आंकड़ा आना अभी बाकी है।
आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में हजारों वर्षों से पित्त, ल्यूकोरिया, गोनोरिया, त्वचा रोग, पेट संबंधी विकार, अल्सार, घाव, दस्त और कमजोरी के इलाज में साल के बीज का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा चॉकलेट बनाने में भी साल के बीजों का प्रयोग किया जाता है। साल के बीजों से बहुमूल्य खाद्य तेल निकाला जाता है। बीज में 19-20 प्रतिशत तेल होता है। तेल का उपयोग मक्खन के विकल्प के रूप में और मिष्ठान्न और खाद्य पदार्थों में भी किया जाता है। तेल निकालने के बाद बची खली में 10-12 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसका उपयोग मुर्गियों के लिए चारे के रूप में किया जाता है।
देश में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड ऐसे राज्य हैं, जहां बड़े पैमाने पर साल के बीजों को प्रमुख वनोपज के तौर पर लघु वनोपज सहकारी समितियों के माध्यम से इकट्ठा करवाया जाता है। इन राज्यों में साल के बीजों का हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी जारी किया जाता है। उत्तराखंड में पहली बार पायलट प्रोजेक्ट के रूप में साल के बीजों को वनोपज के रूप में इकट्ठा किया जा रहा है। हालांकि इस बार बारिश के चलते बीजों को एकत्र किए जाने का अधिक समय नहीं मिल पाया। इस काम में इस बार केवल वन कर्मियों को ही लगाया गया था। कितने बीज इकट्ठा हुए हैं, डिविजनों से आंकड़ें आने बाकी हैं। अगले साल से वृहद स्तर पर इस योजना पर काम किया जाएगा। – मनोज चंद्रन, मुख्य वन संरक्षक, वन विभाग