माल्टा के खरीदार नहीं मिले, काश्तकारों की मेहनत ठंडी पड़ी

स्थान: भतरौंजखान (अल्मोड़ा)

ग्रामीण इलाकों में माल्टा उत्पादक काश्तकार इस समय बेहद परेशान हैं, क्योंकि सर्दियों के मौसम में तैयार होने वाला माल्टा इस बार बाजार में खरीदारों के अभाव के कारण औने-पौने दामों पर भी नहीं बिक पा रहा है। काश्तकारों का कहना है कि माल्टा की गुणवत्ता बेहतर होने के बावजूद व्यापारी ग्रामीण इलाकों तक नहीं पहुंच रहे, जिसके कारण फसल बागानों में ही पड़ी रह गई है।

संतरे की प्रजाति का यह फल विटामिन-सी का समृद्ध स्रोत माना जाता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में विशेष रूप से उपयोगी होता है। एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होने के बावजूद बाजार व्यवस्था के अभाव में किसान अपनी मेहनत का उचित मूल्य प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।

भतरौंजखान क्षेत्र की काश्तकार मोहनी देवी बताती हैं कि माल्टा तोड़ने से लेकर उसे बाजार तक पहुंचाने में कम से कम 20 रुपये प्रति किलो का खर्च आता है, लेकिन इस लागत मूल्य पर भी माल्टा बेच पाना संभव नहीं हो पा रहा है। खरीदार न होने से उन्हें गहरी निराशा का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि यदि यह स्थिति बनी रही तो बागवानी किसानों के लिए घाटे का सौदा बन जाएगी।

किसान लंबे समय से सरकार से मांग कर रहे हैं कि माल्टा जैसे स्थानीय फलों की खरीद-फरोख्त के लिए संगठित बाजार, कोल्ड स्टोरेज और परिवहन सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं, ताकि ग्रामीण काश्तकारों की मेहनत व्यर्थ न जाए और उन्हें अपनी उपज का उचित दाम मिल सके।

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