धोनी का गांव विकास के चौके-छक्के के लिए तरसा
जैंती (अल्मोड़ा)। अपने हेलिकॉप्टर शॉट से विपक्षी टीम के छक्के छुड़ाने वाले भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के पैतृक गांव में विकास के चौके और छक्के की बारिश नहीं हो पाई है। उनका गांव अब तक सड़क से नहीं जुड़ सका है। अस्पताल न होने से ग्रामीण उपचार के लिए पांच किमी दूर पहुंच रहे हैं। गांव में खेल के मैदान की सुविधा नहीं है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में एक दशक में गांव के 20 परिवार पलायन कर चुके हैं।
धोनी मूलरूप से अल्मोड़ा जिले की जैंती तहसील के ल्वाली गांव के निवासी हैं। इस गांव का सबसे बड़ा तोक बिराड़ सड़क से नहीं जुड़ सका है। गांव के लोग छह किमी पैदल चलकर नजदीकी स्टेशन जैंती पहुंचते हैं। बुजुर्गों और मरीजों को दिक्कत का सामना करना पड़ता है। बारिश में बदहाल पैदल रास्ता उनकी कठिन परीक्षा लेता है।
धोनी के गांव में स्वास्थ्य केंद्र नहीं खुल सका है। ऐसे में मरीजों और गर्भवतियों को उपचार और प्रसव के लिए पांच किमी दूर जैंती की दौड़ लगानी पड़ रही है। ग्रामीण किसी तरह गंभीर मरीजों और गर्भवतियों को डोली के सहारे अस्पताल पहुंचा रहे हैं। पूरे तहसील क्षेत्र में खेल मैदान तक नहीं है।
युवाओं का कहना है कि धोनी के नाम से क्षेत्र में एक स्टेडियम बन जाता तो यह पूरे क्षेत्र और जिले के गौरव की बात होती और वे भी उनकी तरह खेलों में बेहतर भविष्य बनाकर जिले और देश का नाम रोशन कर पाते। वर्ष 1970 के दशक में धोनी के पिता पान सिंह धोनी नौकरी के लिए रांची जाकर बस गए लेकिन उनका गांव से जुड़ाव अब भी है। महेंद्र सिंह धोनी वर्ष 2003 में अपने गांव आए थे।
गांव में बंदर, सुअरों के आतंक से खेती करना मुश्किल हो गया है। रोजगार न होने से गांव से लोग पलायन कर रहे हैं। गांव ने देश को महेंद्र सिंह धोनी जैसा क्रिकेटर दिया है लेकिन आज गांव का सुधलेवा कोई नहीं है।
– दिनेश धोनी, ग्राम प्रधान
गांव के कई युवा धोनी की तरह ही क्रिकेटर बनना चाहते हैं लेकिन गांव में मैदान तक नहीं है। इस कारण खेल प्रतिभाएं बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहीं हैं। रोजगार आदि सुविधाओं के लिए युवा पलायन करने के लिए मजबूर हैं।
– दीपक धोनी