सत्य की जीत, कोर्ट के आदेश के बाद राजीव भरतरी फिर बने प्रमुख वन संरक्षक
देहरादून: राजीव भरतरी उच्च न्यायालय के आदेश के बाद दोबारा प्रमुख बन संरक्षक का पदभार संभल चुके हैं। आपको बता दें कि राजीव भरतरी को कॉर्बेट नेशनल पार्क में पेड़ों के कटान की जांच कर रहे थे उनका तबादला 25 नंबर 2021 को प्रमुख वन संरक्षक के पद से जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष पद पर कर दिया गया था। इस पर राजीव भरतरी ने कोर्ट का रूख किया जहां से उन्हें करीब 16 महीने बाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर हॉफ पद पर चार्ज दिया गया है। गौरतलब है कि वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी राजीव भरतरी के हाथ में फिर से उत्तराखंड वन विभाग की कमान सौंप दी गई है। आपको बता दें कि न्यायलय के आदेश में ये भी स्पष्ट है कि वे पाखरो सहित कई मामलों में निर्णय नहीं ले सकेंगे। उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद उत्तराखंड सरकार ने दोपहर करीब डेढ़ बजे उनके चार्ज संभालने के आदेश जरी किए। जिसके बाद भरतरी को प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) पद पर दोबारा चार्ज दिया गया।दरअसल, हाईकोर्ट ने सरकार को कल मंगलवार सुबह 10 बजे तक राजीव भरतरी को प्रमुख वन संरक्षक का पदभार सौंपने के निर्देश दिए थे। अदालत के आदेश के बाद सरकार की उलझन बढ़ गई थी। आपको बता दें कि कल महावीर जयंती पर सरकारी छुट्टी थी,ऐसे में यह पहेली बनी हुई थी कि छुट्टी के दिन भरतरी को हॉफ की कुर्सी पर बैठाया जाएगा या नहीं। अदालती आदेश की भनक लगते ही वन विभाग के कुछ अधिकारी और कर्मचारी सुबह से ही मुख्यालय पहुंच गए थे। गौरतलब है कि 21 फरवरी को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण इलाहाबाद की नैनीताल स्थित सर्किट बेंच ने राजीव भरतरी को प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) के पद से हटाए जाने और उनके स्थान पर विनोद कुमार सिंघल को नियुक्त किए जाने के मामले में सुनवाई के बाद अपना फैसला भरतरी के पक्ष में दिया था।कैट ने भरतरी का तबादला करने के आदेश पर रोक लगाते हुए सरकार को उन्हें तत्काल प्रभाव से उसी पद पर बहाल करने के आदेश दिए थे। इसके बाद 21 मार्च को सरकार की ओर से भी कैट में पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई, जिसे कैट ने निरस्त कर दिया था। यह सरकार के लिए बड़ा झटका था। इसके बाद पीसीसीएफ सिंघल की ओर से कैट में व्यक्तिगत रूप से पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई थी लेकिन उन्हें भी कोई राहत नहीं मिल पाई थी। कैट के तीन आदेश के बाद सरकार की ओर से इस मामले में शीघ्र निर्णय लिए जाने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई।अब जब हाईकोर्ट ने भरतरी को हॉफ की कुर्सी सौंपे जाने के स्पष्ट आदेश दे दिए हैं, ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि सरकार इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करते हुए कोई आदेश जारी करेगी। लेकिन देर रात तक भी असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। मामले के अनुसार आईएफएस अधिकारी राजीव भरतरी ने याचिका दायर कर कहा था कि वह भारतीय वन सेवा के राज्य के सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं, लेकिन सरकार ने 25 नवंबर 2021 को उनका स्थानांतरण प्रमुख वन संरक्षक पद से जैव विविधता बोर्ड के अध्यक्ष पद पर कर दिया था, जिसे उन्होंने संविधान के खिलाफ माना। इस संबंध में उन्होंने सरकार को चार प्रत्यावेदन दिए थे लेकिन सरकार ने इन प्रत्यावेदनों पर कोई सुनवाई नहीं की। राजीव भरतरी ने कहा कि उनका स्थानांतरण राजनीतिक कारणों से किया गया है, जिसमें उनके सांविधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है। वरिष्ठ आईएफएस राजीव भारतरी का ये बयान कि उनका स्थानांतरण राजीतिक कारणों के चलते हुये हुआ। ये इस बात का भी संकेत है कि जब राजीव भरतरी ने सरकार को चार प्रत्त्यावेदन दिये और सरकार की तरफ से सुनवाई न होना इस बात को दर्शाता है कि उनका पद से हटाना सियासी खेल ही था। ये लड़ाई सरकार बनाम भरतरी थी ऐसे में अदालत का आदेश सरकार की किरकिरी जरूर करता है और शायद ये उत्तराखण्ड वन विभाग का पहला ही मामला होगा जिसमें सरकार चारो खाने चित हुई है। बहरहाल वरिष्ठ आईएफएस राजीव भरतरी ने उत्तराखण्ड वन विभाग की कमान संभल ली हो लेकिन विभाग में वो खुशी जैसा माहौल नहीं देखने को मिला।